आप में से कुछ लोगो को पता होगा की Dhanteras Kya Hai/धनतेरस क्या है, लकिन आपको यह पता नही होगा की धनतेरस क्यों मनाई जाती है और धनतेरस की कथा क्या है. अगर आपको धनतेरस के बारे कुछ भी नहीं पता है तो यह आर्टिकल अंत तक पढ़ते रहे. इस आर्टिकल में हम धनतेरस के बारे में सब कुछ जानेंगे.
जायदातर लोगो को पता ही है की धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले आती है और इस दिन सोना और चांदी खरीदते है. धनतेरस कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और इसे धन त्रयोदशी या धनवंतरी जयंती भी कहते है. पांच दिनों तक चलने वाली दिवाली का त्यौहार में धनतेरस सबसे पहले मनाया जाता है.
तो चलिए शुरू करते है और जानते है Dhanteras Kya Hai/ धनतेरस क्या है और क्यों मनाई जाती है.
Dhanteras Kya Hai – धनतेरस क्या है?
धनतेरस कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है, हमारे हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार धनतेरस के दिन भगवान् धन्वंतरी जी का जन्म हुआ था. धनतेरस के दिन भगवान् धन्वंतरी की पूजा उपासना करने से अच्छी सेहत और सुख-समृधि घर में आती है, और इस दिन सोना, चांदी, बर्तन या कोई भी खरीदारी करना बहुत ही शुभ माना जाता है. दिवाली त्यौहार पांच दिन का होता है इसमें सबसे पहले धनतेरस आती है फिर नरक चतुर्दशी, और फिर दिवाली आती है, दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा और अन्नकूट और फिर भाई दूज का त्यौहार आता है, इसलिए दिवाली को महापर्व कहते है.
धनतेरस क्यों मनाई जाती है?
पौराणिक कथा के अनुसार समुन्द्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान् धन्वंतरी अपने हाथो में अमृत कलश लेकर समुन्द्र से प्रकट हुए थे. भगवान् धन्वंतरी के प्रकट होने पर ही धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है, और कथा के अनुसार भगवान् धन्वंतरी विष्णु भगवान् के अंशावतार है.
अब जानते है धनतेरस की पौराणिक कथा के बारे में: पौराणिक कथा के अनुसार बहुत पहले की बात है भगवान् विष्णु मृत्यु लोक यानी धरती पर विचरण करने आ रहे थे, उन्हें देख कर लक्ष्मी जी ने भगवान् विष्णु जी के साथ चलने का आग्रह किया. तब विष्णु जी ने कहा की यदि आप मेरी बात मान लो तब मै अपने साथ आपको ले जा सकता हु तब लक्ष्मी जी ने भगवान् विष्णु की बात मान ली और भगवान् विष्णु जी के साथ धरती पर आ गयी.
भगवान् विष्णु और लक्ष्मी जी कुछ देर बाद एक जगह पहुच गये और फिर भगवान् विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से कहा की जब तक मै ना आऊ आप यही रहना मै दक्षिण दिशा की और जा रहा हु तुम उधर मत आना यह कहकर भगवान् विष्णु दक्षिण दिशा की और चले गये. भगवान् विष्णु जी के जाने पर लक्ष्मी जी ने सोचा की ऐसा दक्षिण दिशा में क्या है जो मुझे दक्षिण दिशा में जाने के लिए मना किया गया है. लक्ष्मी जी से नही रहा गया और लक्ष्मी जी भगवान् विष्णु जी के पीछे पीछे दक्षिण दिशा में चलने लगे.
थोड़ी दुरी पर लक्ष्मी जी को सरसों का खेत दिखाई दिया जिसमे बहुत सारे फुल लगे हुए थे, सरसों के खेत की सोभा देखकर लक्ष्मी जी मंत्रमुग्ध हो गयी और फुल तोड़कर लक्ष्मी जी श्रृंगार करने लगी. थोड़ी और आगे चलने पर एक गन्ने का खेत दिखा तब लक्ष्मी जी ने गन्ने तोड़कर गन्ने के रस पीने लगी, और उसी वक्त भगवान् विष्णु जी उधर आ गये और लक्ष्मी जी को देखकर उनसे नाराज होकर उन्हें सराप दे दिया की मैंने आपको इधर आने को मना किया था पर आप आ गयी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी.
अब आप इस अपराध के बदले में किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो ऐसा कह कर भगवान विष्णु उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गये.
तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर में रहने लगी और एक दिन लक्ष्मी जी ने उस किसान की पत्नी से कहा की तुम स्नान करके मेरी बनाई गयी लक्ष्मी जी की मूर्ति का पूजन करो और फिर रसोई में प्रसाद बनाना तब तुम लक्ष्मी जी से जो मांगोगी वह मिल जाएगा. किसान की पत्नी ने जैसा लक्ष्मी जी ने कहा वैसा ही किया. पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी जी की कृपा से किसान का घर दुसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, और स्वर्ण आदि से भर गया, लक्ष्मी जी ने किसान को धन से पूर्ण कर दिया और ऐसे ही किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गये.
12 वर्ष के बाद लक्ष्मी जी जाने को तैयार हुई और विष्णु जी लक्ष्मी जी को लेने के लिए आये तो किसान ने उन्हें भेजने से इनकार कर दिया. तब विष्णु जी ने किसान से कहा की इन्हें कौन जाने देता है यह तो चंचला है इनको बड़े बड़े नही रोक सके, इनको मेरा सराप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थी और अब तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चूका है.
ऐसा सुनकर किसान बोला की नही अब मै लक्ष्मी जी को नही जाने दूंगा तब लक्ष्मी जी ने कहा की है किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जैसा मै कहू वैसा करो कल तेरस है तुम पूरे घर को साफ़ कर देना और रात्री में घी का दीपक जला कर रखना और शाम के समय मेरा पूजन करना और एक ताम्बे के कलश में मेरे लिए रूपए भर कर रखना मै उस कलश में निवास करूंगी किन्तु मै तुम्हे वहा दिखाई नही दूंगी और इस एक दिन की पूजा से पूरे वर्ष तुम्हारे घर से मै नही जाउंगी ऐसा कह कर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दशो दिशाओ में फेल गयी.
अगले दिन किसान ने लक्ष्मी जी के कहे अनुसार पूजन किया और उसका घर धन से पूर्ण हो गया. इसी वजह से धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी की पूजा होती है.
धनतेरस कब मनाई जाती है?
धनतेरस हर वर्ष कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है.
Conclusion
आज हमने इस आर्टिकल में धनतेरस के बारे जाना है जैसे: Dhanteras Kya Hai, धनतेरस क्यों मनाई जाती है, धनतेरस पौराणिक कथा क्या है, और धनतेरस कब मनाई जाती है. अगर आपको आज कुछ नया सिखने को मिला है तो अपने दोस्तों के साथ भी यह आर्टिकल जरुर शेयर करे. धन्यवाद!
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