Amalaki Ekadashi Vrat Katha | Amalaki Ekadashi 2022

Amalaki Ekadashi Vrat Katha: आमलकी एकादशी 14 मार्च 2022 को है और यह एकादशी हर साल फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष में आती है, आमलकी एकादशी (Amalaki Ekadashi 2022) का व्रत करने वाले व्यक्तियों को एक हज़ार गौ दान करने का फल प्राप्त होता है.

आमलकी का मतलब आवला, आवला को हिन्दू धर्म शास्त्रों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है, जब भगवान् विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना के लिए जन्म दिया तो उसी समय विष्णु जी ने आवला के वृक्ष को भी अस्तित्व में लाये, क्यूंकि आवला वृक्ष के हर स्थान में ईश्वर का स्थान माना गया है.

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Amalaki Ekadashi Vrat Katha – Amalaki Ekadashi 2022

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है राजा मांधाता वशिष्ठ मुनि से बोले है वशिष्ठ जी आप मुझ पर कृपा करके मुझे ऐसे व्रत की कथा सुनाये जिससे मेरा कल्याण हो, इसपर वशिष्ठ मुनि बोले है राजन सब व्रतों से उतम और अंत में मोक्ष प्रदान करने वाले आमलकी एकादशी व्रत की में तुम्हे कथा सुनाता हूं. यह आमलकी एकादशी फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष में आती है और इस व्रत का जो भी पालन करता है उसको एक हज़ार गौ दान फल के बराबर फल प्राप्त होता है और उसके समस्त पाप कर्म नष्ट हो जाते है और अंत में उसे वैकुण्ठ धाम प्राप्त होता है.

अब में आपसे आमलकी एकादशी की पौराणिक कथा कहता हूं जिसे आप ध्यानपूर्वक सुने, वेदिश नाम का नगर था जिसमे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शुद्र रहते थे और उस नगर में सदेव वेद ध्वनी गूंजा करती थी. उस नगर में पापी, नास्तिक, और दुराचारी कोई भी नही था और उस नगर में चैतरथ नाम का चंद्रवंशी राजा राज्य करता था और वह राजा अत्यंत विद्वान और धर्मी था, उस नगर के सभी लोग भगवान् विष्णु जी की भक्ति करते थे और साथ में स्त्री, पुरुष, बाल, और वृद्ध सभी एकादशी व्रत का पालन करते थे.

एक दिन फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष में आमलकी एकादशी आई उस दिन राजा के साथ-साथ पूरी प्रजा, स्त्री, पुरुष, बाल सभी ने पूरी विधि विधान द्वारा आमलकी एकादशी व्रत का पालन किया. राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में गये और वहा पूर्ण कुम्भ स्थापित करके धुप, दीप और पंचरत्न आदि से आवले के वृक्ष का पूजन करने लगे और राजा के साथ साथ पूरे नगरवासी उस मंदिर में रात भर जागरण किया और रात के समय उस मंदिर में एक बहलिया आया, यह बहलिया पापी तथा दुराचारी था और अपने कुटुम्भ का पालन जीवो की हत्या करके किया करता था.

वह बहलिया भूखा प्यासा था और भोजन पाने की इच्छा से वह बहलिया मंदिर के एक कौने में जाकर बैठ गया, और उस जगह बैठे-बैठे वह भगवान् विष्णु जी की कथा सुनने लगा. इस प्रकार पूरे नगरवासी के साथ वह बहलिया ने सारी रात भूखे प्यासे रहकर जागरण करके व्यतीत की, और सुबह होते ही सभी नगरवासी अपने अपने घर चले गये उन्हें देख वह बहलिया भी अपने घर गया और अपने घर जाकर उसने भोजन किया.

कुछ दिन बीतने के बाद उस बहलिये की मृत्यु हो गयी, उस बहलिये ने बहुत से जीवो की हत्या की थी इस कारण से वह नरक का भागी था लकिन उसने अनजाने में आमलकी एकादशी की पूरी रात भूखे प्यासे गुजारी और साथ में जागरण किया उसके प्रभाव से उस बहलिये को राजा विदुरथ के घर में जन्म मिला और उसका नाम वसुरथ रखा गया. वसुरथ बड़ा होने के बाद वह चतुरंगिनी सेना के साथ-साथ धन से युक्त होकर दस ग्रामो का संचालन करने लगा, और वह अत्यंत धार्मिक, सत्यवादी, कर्मवीर और विष्णु भक्त हुआ.

वह अपनी प्रजा का समान भाव से पालन करता था और साथ में दान देना उसका नित्य कर्म बन गया था. एक बार राजा वसुरथ शिकार खेलने के लिए वन में गया और देवयोग से वह वन में रास्ता भटक गया और उसे उस वन का ज्ञान न होने के कारण वह उसी वन में एक वृक्ष के नीचे सौ गया.

कुछ समय बाद पहाड़ी डाकू उस वन में आये और राजा वसुरथ को अकेला देख कर मारो मारो चिलाते हुए राजा वसुरथ की और दोड़े और डाकू कहने लगे की इस दुष्ट राजा ने हमारे माता-पिता, पुत्र-पौत्रों आदि समस्त समंधियो को मारा है तथा नगर से हमे निकाल दिया है अब हमे इस मारकर हमारे अपमान का बदला लेना चाहिए. उस समय राजा वसुरथ के शरीर से एक दिव्य देवी प्रकट हुई, वह देवी अत्यंत सुन्दर और सुन्दर वस्त्रो, आभुषनो से अलंकृत थी और देवी की आँखों से क्रोध भीसन लपटे निकल रही थी उस समय वह देवी काल के सामान प्रतीत हो रही थी उस देवी ने देखते ही देखते डाकुओ का समूह का विनाष कर किया.

राजा वसुरथ कुछ समय बाद नींद से जागे और देखा की सभी डाकू मरे हुए थे, और वह सोचने लगा की किसने इन्हें मारा है और इस वन में कौन मेरा हितेषी रहता है इतने में आकाशवाणी हुई “है राजन इस संसार में भगवान् श्री विष्णु के अतिरिक्त तेरी रक्षा कौन कर सकता है” इस आकाशवाणी को सुन कर राजा वसुरथ ने भगवान् विष्णु को स्मरण करके उन्हें प्रणाम किया और अपने नगर की और चल दिया और अपने नगर में सुखपूर्वक राज्य करने लगा और अंत में उस राजा को वैकुण्ठ धाम प्राप्त हुआ.

इस प्रकार वशिष्ठ मुनि ने राजा मांधाता से कहा की जो कोई भी व्यक्ति इस आमलकी एकादशी के व्रत का पालन करता है उसे निसंदेह वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है.

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धन्यवाद,

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Team, HindiGrab.in

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