Kamada Ekadashi Vrat Katha | कामदा एकादशी व्रत कथा 2022

Kamada Ekadashi Vrat Katha: हिन्दू धर्म के वैदिक ग्रन्थ व् शास्त्र में एकादशी तथा अन्य व्रत रखने को आध्यात्मिक जीवन का महतवपूर्ण अंग मानते है. वैदिक ग्रन्थ के अनुसार यह सभी व्रत विधि विधान उनके लिए बनाये गये है जो दिव्य जगत में भगवान् का संग पाना चाहते है और बड़े से बड़े ऋषि, मुनि, और महात्मागन इन सभी व्रत विधि विधानों को मानते है इसलिए उन्हें इसका फल भी प्राप्त होता है.

कामदा एकादशी जिसे हम फलदा एकादशी भी कहते है श्री हरी का उत्तम व्रत कहा गया है, इस व्रत को करने से मनुष्य को बड़े से बड़े पाप से मुक्ति मिलती है और यह एकादशी सभी कष्टों को हरने वाली एकादशी है और उचित मात्रा में फल देने वाली है इसलिए इसे फलदा एकादशी कहते है और हर कामना पूरी करती है इसलिए इसे कामदा एकादशी भी कहते है. तो चलिए शुरू करते है और जानते ई Kamada Ekadashi Vrat Katha.

Kamada Ekadashi Vrat Katha – कामदा एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे हे भगवन में आपको कोटि कोटि नमन करता हु और आप कृपा करते मुझे चैत्र मास की शुकलपक्ष में आने वाली एकादशी की कथा कहिए, इसपर भगवान् श्री कृष्ण ने कहा हे धर्मराज यही प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने उनके गुरु वस्शिष्ट जी से किया था और जो वस्शिष्ट जी ने अपने शिष्य राजा दिलीप के इस प्रश्न का समाधान किया था वह मै तुम्हे कहता हूँ.

एक समय की बात है प्राचीनकाल में रतनपुर नाम का एक नगर था वहा पर अनेक ऐश्वर्यों से पूर्ण पुण्डरीक नाम का राजा राज्य करता था. रतनपुर नगर में अनेक किन्नर, अफ्सराए, और गंधर्व वास करते थे उनमे से एक ललिता और ललित नाम के पति पत्नी अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे और उन दोनों में इतना स्नेह था की कुछ ष्णभर के लिए अलग-अलग होने पर दोनों अत्यंत व्याकुल हो जाते थे.

एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्यो गन्धर्वो सहित ललित भी गान कर रहा था, गाते गाते ललित को अपनी प्रिय ललिता की याद आ गयी और उसका स्वर भंग हो गया और गाने का स्वरुप ही बिगड़ गया ललित के मन के भाव जानकार कार्कोट नाम के नाग ने स्वर भंग होने का कारण राजा से कह दिया तब पुण्डरीक ने क्रोध पूर्वक कहा की तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है में तुझे श्राप देता हु तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला विशाल राक्षक अंत: अपने किये हुए कर्म का फल भोग.

पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी समय एक महाकाय विशाल राक्षक में परिवर्तित हो गया उसका मुख अन्यंत भयंकर दिख रहा था तथा मुख से अग्नि निकल रही थी उसकी नाक पर्वत की चोटी के समान लम्बी हो गयी और उसके बाल पर्वतो पर खड़े वृक्षों के समान लगने लग गये थे, इस प्रकार वह राक्षक बनकर अत्यंत दुःख भोगने लगा.

जब उसकी प्रिय ललिता को यह वर्दांत मालूम हुआ तो उसे अत्यंत दुःख हुआ और वह अपने पति ललित का उधार सोचने लगी, वह राक्षक अनेक प्रकार के दुःख को सहन करता हुआ वन में रहने लगा. एक बार ललिता अपने पति के पीछे-पीछे घुमती हुई विन्द्याचल पर्वत पर पहुँच गयी जहा पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था ललिता श्रृंगी ऋषि के आश्रम गयी और वहा जा आकर अन्यंत विनीत्भाव से श्रृंगी ऋषि से प्राथना करने लगी.

ललिता को देख कर श्रृंगी ऋषि बोले हे शुभगे तुम कौन हो और यहा किसलिए आई हो तब ललिता बोली मेरा नाम ललिता है और मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशाल काय राक्षक हो गया है इसका मुझे बहुत जायदा दुःख है उसके उधार का कृपया करके उपाय बताये. श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या अब चैत्र शुक्लपक्ष की एकादशी आने वाली है जिसका नाम कामदा और फलदा एकादशी है.

इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य का सब कार्य सिद्ध होते है यदि तुम कामदा एकादशी का व्रत करके उनके पूण्य का फल अपने पति को दे तो वे तुरंत ही राक्षक योनी से मुक्त हो जाएगा और पुण्डरीक राजा का श्राप ही अवस्य शांत हो जाएगा. श्रृंगी मुनि की यह बात सुन कर ललिता ने चैत्र शुकलपक्ष की कामदा एकादशी के व्रत का पूरी विधि विधान से पालन किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान् से प्राथना करने लगी.

“हे प्रभु मैंने जो यह कामदा एकादशी का व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षक योनी से मुक्त हो जाए” ललिता एकादशी का फल अपने पति को देते ही ललित राक्षक योनी से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप में आ गया इसके पश्चात वह दोनों अपने विमान में बैठ कर स्वर्ग लोक चले गये.

इस प्रकार वशिष्ट मुनि कहने लगे की हे राजन इस कामदा एकादशी के व्रत को विधि पूर्वक करने से समस्त पापो से मुक्ति मिल जाती है और राक्षक की भी योनी से भी मुक्ति मिलती है संसार में इस व्रत के बराबर कोई और दूसरा व्रत नही है.

कामदा एकादशी के दिन इस व्रत की कथा सुनने व् पढने से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है और वास्तव में हर एकादशी का पूण्य अपार है एकादशी का व्रत करने से मनुष्य समस्त पापो और कष्टों से मुक्त होकर भाव्स्सागर से तर जाते है और अंत में भगवान् के धाम को प्राप्त होते है.

हिन्दू धर्म शास्त्रों में बताया गया है की एकादशी के व्रत करने वालो को दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद अन नही खाना चाहिए और एकादशी के दिन झूट, नींद, और छल कपट से बचना चाहिए और पूरे दिन भगवान् के दिव्य नाम और मंत्र (हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे) का स्मरण करना चाहिए इससे उन्हें एकादशी का पूर्ण लाभ प्राप्त होगा.

कामदा एकादशी कब है?

कामदा एकादशी की तिथि हिन्दू नववर्ष के बाद का पहला व्रत होता है और इस साल कामदा एकादशी व्रत 13 अप्रैल 2022 को है. वैसे एकादशी तो 12 अप्रैल 2022 को है लकिन यह एकादशी का व्रत 13 अप्रैल को रखा जाएगा क्यूंकि 13 अप्रैल को महा द्वादशी है, जब महा द्वादशी होती है तो व्रत एकादशी को नही बल्कि महा द्वादशी को रखा जाता है.

कामदा एकादशी व्रत पारण करने का समय कब है?

कामदा एकादशी व्रत पारण करने का समय 14 अप्रैल 2022 को सुबह 06:05 AM से लेकर 10:20 AM तक है.

धन्यवाद!

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Team: HindiGrab.in