Bhagwat Geeta Popular Shlok | भगवत गीता के महत्वपूर्ण श्लोक अर्थ सहित

Bhagwat Geeta Popular Shlok | भगवत गीता के महत्वपूर्ण श्लोक अर्थ सहित: हरे कृष्ण दोस्तों आपने भगवत गीता तो पढ़ी ही होगी या फिर भगवत गीता के बारे में सुना ही होगा की भगवत गीता दुनिया की सबसे प्रसिद्ध किताब है. भगवतगीता एक ऐसी किताब है जो हर किसी को पढ़ना चाहें कोई हिन्दू, क्रिस्टन, मुस्लिम, या सिख ही क्यों ना हो सबको पढ़ना जरुरी है.

आज कल के लोग ऐसे देखते है की भगवत गीता सिर्फ हिन्दुओ के लिए है लकिन ऐसा नहीं है भगवत गीता का ज्ञान पूरी दुनिया के लिए जरुरी है, इसीलिए भगवत गीता दुनिया की सभी भाषा में ट्रांसलेट हुई है. तो आप भी समय निकाल का भगवत गीता का अध्यन जरूर करे, जिससे आपको आपके जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त हो.

आज इस आर्टिकल में हम भगवत गीता के कुछ महत्वूर्ण श्लोक पढ़गे और जानेंगे (Bhagwat Geeta Popular Shlok).

Bhagwat Geeta Popular Shlok – भगवत गीता के महत्वपूर्ण श्लोक अर्थ सहित

अध्याय २(2), श्लोक २३(23)
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: । 
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥ 

हिंदी अर्थ: आत्मा को न शस्त्र से काटा जा सकता है, न आग से जलाया जा सकता है, न पानी से भिगोया जा सकता है, और न ही हवा उसे सूखा सकती है.
अध्याय २(2), श्लोक ३७(37)
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

हिंदी अर्थ: यदि तुम युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हे स्वर्ग मिलेगा और यदि युद्ध में विजयी होते हो तो धरती का सुख भोगोगे. इसलिए उठो हे कौन्तेय, और निश्चय करके युद्ध करो.
अध्याय २(2), श्लोक ४७ (47)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। 
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

हिंदी अर्थ: कर्म करो फल की चिंता ना करो. कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है कर्म के फलो पर नहीं. इसलिए किसी भी कर्म को फल के लिए मत करो, और ही काम करने के आसक्ति हो. 
अध्याय २(2), श्लोक ६२(62)
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

हिंदी अर्थ: विषय वस्तु के बारे में सोचने से व्यक्ति को उन वस्तुओ से आसक्ति हो जाती है. इससे उनमे इच्छा पैदा होती है और इच्छाओ में अवरोध आने पर क्रोध उत्पन्न होता है.
अध्याय २(2), श्लोक ६३(63)
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

हिंदी अर्थ: क्रोध आने से व्यक्ति की मति मारी जाती है जिससे बुद्धि भर्मित हो जाती है. बुद्धि भर्मित होने से व्यक्ति की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि नष्ट होने से व्यक्ति अपना ही नाश कर लेता है.
अध्याय ३(3), श्लोक २१(21)
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

हिंदी अर्थ: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो काम करते है दूसरे व्यक्ति भी वैसा ही काम करने लग जाते है. श्रेष्ठ पुरुष जो प्रमाण या उदाहरन प्रस्तुत करते है, समस्त मानव समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते है.  
अध्याय ४(4), श्लोक ७(7)
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

हिंदी अर्थ: जब जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, विनाश का कार्य होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं इस पृथ्वी पर अवतार लेता हूँ.
अध्याय ४(4), श्लोक ८(8)
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

हिंदी अर्थ: सज्जन व्यक्तियों के कल्याण के लिए, दुष्कर्मियों के विनाश के लिए, और धर्म की स्थापना के लिए मैं युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूँ. 
अध्याय ४(4), श्लोक ३९(39)
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

हिंदी अर्थ: जिनका विश्वास गहरा है और जिन्होंने अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने का अभ्यास किया है, वे दिव्य ज्ञान प्राप्त करते हैं. इस तरह के पारलौकिक ज्ञान के माध्यम से, वे जल्दी से परम शांति प्राप्त करते हैं.
अध्याय ६(6), श्लोक ५(5)
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्रात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:॥

हिंदी अर्थ: आत्मा के द्वारा आत्मा को ऊपर मुक्त करें, आत्मा को भोग या हठपूर्वक दमन के द्वारा अध: पतित और खिन्न न होने दें. क्योंकि आत्मा ही आत्मा का मित्र है, आत्मा ही आत्मा का शत्रु है.
अध्याय ९(9), श्लोक २६(26) 
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:॥

हिंदी अर्थ: जो भक्त मेरे लिए प्रेम भाव से मुझे पत्र (पत्ती), पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है. उस शुद्ध मन के भक्त का वह भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ मैं भोगता हूँ अर्थात् स्वीकार करता हूँ.
अध्याय १२(12), श्लोक १५(15)
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य: ।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय:॥

हिंदी अर्थ: वे जो किसी को उद्विग्न करने का कारण नहीं होते और न ही किसी के द्वारा व्यथित होते हैं. जो सुख-दुख में समभाव रहते हैं, भय और चिन्ता से मुक्त रहते हैं, मेरे ऐसे भक्त मुझे अति प्रिय हैं.
अध्याय १८(18), श्लोक ६६(66) 
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥

हिंदी अर्थ: सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, इसमें कोई संदेह नहीं हैं.

धन्यवाद:

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Team: HindiGrab.in

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